श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 87: भरत की मूर्छा से गुह, शत्रुघ्न और माताओं का दुःखी होना, भरत का गुह से श्रीराम आदि के भोजन और शयन आदि के विषय में पूछना  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  2.87.1 
 
 
गुहस्य वचनं श्रुत्वा भरतो भृशमप्रियम्।
ध्यानं जगाम तत्रैव यत्र तच्छ्रुतमप्रियम्॥ १॥
 
 
अनुवाद
 
  गुह के श्रीराम के जटाधारण आदि से सम्बन्ध रखने वाले अत्यन्त अप्रिय वचन सुनकर भरत को बड़ी चिंता सताने लगी। जिन श्रीराम को पाने के लिए वह प्रयासरत थे, उन्हीं के विषय में उन्होंने अप्रिय बात सुनी थी, इसलिए वे सोचने लगे कि अब उनका मनोरथ पूर्ण नहीं हो पायेगा। भगवान राम ने जब जटा धारण कर ली, तब वे शायद ही लौटें।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.