श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 80: अयोध्या से गङ्गा तट तक सुरम्य शिविर और कूप आदि से युक्त सुखद राजमार्ग का निर्माण  »  श्लोक 8-9
 
 
श्लोक  2.80.8-9 
 
 
अपरे वीरणस्तम्बान् बलिनो बलवत्तरा:।
विधमन्ति स्म दुर्गाणि स्थलानि च ततस्तत:॥ ८॥
अपरेऽपूरयन् कूपान् पांसुभि: श्वभ्रमायतम्।
निम्नभागांस्तथैवाशु समांश्चक्रु: समन्तत:॥ ९॥
 
 
अनुवाद
 
  अन्य प्रबल मनुष्य जिनकी जड़ें नीचे तक जमी हुई थीं, उन्होंने कुश, कास आदि के झुरमुटों को अपने हाथों से ही उखाड़ फेंका। वे जहाँ-तहाँ ऊँचे-नीचे दुर्गम स्थानों को खोद-खोदकर बराबर कर देते थे। दूसरे लोग कुओं और लंबे-चौड़े गड्ढों को मिट्टी और धूल से पाट देते थे। जो स्थान नीचे होते, वहाँ सब ओर से मिट्टी डालकर वे उन्हें शीघ्र ही बराबर कर देते थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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