जाति-जाति के पेड़ों और उपवनों से सजे-धजे, शीतल निर्मल जल से भरे हुए और बड़ी-बड़ी मछलियों से व्याप्त गंगा के किनारे तक बना हुआ राजसी मार्ग उस समय बहुत शोभा पा रहा था। इसे बनाने में कुशल कारीगरों ने कमाल कर दिया था। रात को जब चाँदनी और तारे निकलते, तो यह मार्ग वैसा ही सुशोभित हो जाता था, जैसा आकाश दिखता है।
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्येऽयोध्याकाण्डेऽशीतितम: सर्ग:॥ ८०॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके अयोध्याकाण्डमें अस्सीवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ ८०॥