श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 80: अयोध्या से गङ्गा तट तक सुरम्य शिविर और कूप आदि से युक्त सुखद राजमार्ग का निर्माण  »  श्लोक 21-22
 
 
श्लोक  2.80.21-22 
 
 
जाह्नवीं तु समासाद्य विविधद्रुमकाननाम्।
शीतलामलपानीयां महामीनसमाकुलाम्॥ २१॥
सचन्द्रतारागणमण्डितं यथा
नभ: क्षपायाममलं विराजते।
नरेन्द्रमार्ग: स तदा व्यराजत
क्रमेण रम्य: शुभशिल्पिनिर्मित:॥ २२॥
 
 
अनुवाद
 
  जाति-जाति के पेड़ों और उपवनों से सजे-धजे, शीतल निर्मल जल से भरे हुए और बड़ी-बड़ी मछलियों से व्याप्त गंगा के किनारे तक बना हुआ राजसी मार्ग उस समय बहुत शोभा पा रहा था। इसे बनाने में कुशल कारीगरों ने कमाल कर दिया था। रात को जब चाँदनी और तारे निकलते, तो यह मार्ग वैसा ही सुशोभित हो जाता था, जैसा आकाश दिखता है।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्येऽयोध्याकाण्डेऽशीतितम: सर्ग:॥ ८०॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके अयोध्याकाण्डमें अस्सीवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ ८०॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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