श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 80: अयोध्या से गङ्गा तट तक सुरम्य शिविर और कूप आदि से युक्त सुखद राजमार्ग का निर्माण  »  श्लोक 18-20
 
 
श्लोक  2.80.18-20 
 
 
बहुपांसुचयाश्चापि परिखा: परिवारिता:।
तत्रेन्द्रनीलप्रतिमा: प्रतोलीवरशोभिता:॥ १८॥
प्रासादमालासंयुक्ता: सौधप्राकारसंवृता:।
पताकाशोभिता: सर्वे सुनिर्मितमहापथा:॥ १९॥
विसर्पद्भिरिवाकाशे विटङ्काग्रविमानकै:।
समुच्छ्रितैर्निवेशास्ते बभु: शक्रपुरोपमा:॥ २०॥
 
 
अनुवाद
 
  मार्ग में बने हुए विश्राम-स्थान इन्द्रपुरी की तरह ही शोभायमान दिखते थे। इन विश्राम-स्थलों के चारों ओर खाइयाँ खोदी गई थीं और धूल-मिट्टी के ऊँचे ढेर लगाए गए थे। खेमों के अंदर इन्द्रनीलमणि से बनी हुई प्रतिमाएँ सजाई गई थीं, जो गलियों और सड़कों पर विशेष शोभा दे रही थीं। राजकीय गृहों और देव स्थानों से युक्त ये शिविर चूने पुते हुए प्राकारों (चहारदीवारियों) से घिरे थे। सभी विश्राम स्थान पताकाओं से सुशोभित थे। हर जगह बड़ी-बड़ी सड़कों का सुंदर ढंग से निर्माण किया गया था। कबूतरों के रहने के स्थानों (कावकों) और ऊँचे-ऊँचे श्रेष्ठ विमानों के कारण उन सभी शिविरों की शोभा और बढ़ गई थी।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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