श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 80: अयोध्या से गङ्गा तट तक सुरम्य शिविर और कूप आदि से युक्त सुखद राजमार्ग का निर्माण  »  श्लोक 13-14
 
 
श्लोक  2.80.13-14 
 
 
ससुधाकुट्टिमतल: प्रपुष्पितमहीरुह:।
मत्तोद‍्घुष्टद्विजगण: पताकाभिरलंकृत:॥ १३॥
चन्दनोदकसंसिक्तो नानाकुसुमभूषित:।
बह्वशोभत सेनाया: पन्था: सुरपथोपम:॥ १४॥
 
 
अनुवाद
 
  इस प्रकार सेनाका वह मार्ग देवताओंके मार्गकी भाँति अधिक शोभा पाने लगा। उसकी भूमिपर चूना-सुर्खी और कंकरीट बिछाकर उसे कूट-पीटकर पक्का कर दिया गया था। उसके किनारे-किनारे फूलोंसे सुशोभित वृक्ष लगाये गये थे। वहाँके वृक्षोंपर मतवाले पक्षी चहक रहे थे। सारे मार्गको पताकाओंसे सजा दिया गया था, उसपर चन्दनमिश्रित जलका छिड़काव किया गया था तथा अनेक प्रकारके फूलोंसे वह सड़क सजायी गयी थी।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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