श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 78: शत्रुज का रोष, उनका कुब्जा को घसीटना और भरतजी के कहने से उसे मूर्च्छित अवस्था में छोड़ देना  »  श्लोक 21
 
 
श्लोक  2.78.21 
 
 
तं प्रेक्ष्य भरत: क्रुद्धं शत्रुघ्नमिदमब्रवीत्।
अवध्या: सर्वभूतानां प्रमदा: क्षम्यतामिति॥ २१॥
 
 
अनुवाद
 
  भरत ने क्रोधित शत्रुघ्न को देखकर उनसे कहा — ‘हे सुमित्रा कुमार! क्षमा करो, स्त्रियाँ सभी प्राणियों के लिए अवध्य होती हैं।’
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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