श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 78: शत्रुज का रोष, उनका कुब्जा को घसीटना और भरतजी के कहने से उसे मूर्च्छित अवस्था में छोड़ देना  »  श्लोक 19
 
 
श्लोक  2.78.19 
 
 
स बली बलवत् क्रोधाद् गृहीत्वा पुरुषर्षभ:।
कैकेयीमभिनिर्भर्त्स्य बभाषे परुषं वच:॥ १९॥
 
 
अनुवाद
 
  जब बलवान शत्रुघ्न क्रोध से भरकर मन्थरा को जोर से पकड़कर घसीट रहे थे, तब उसे छुड़ाने के लिए कैकेयी उनके पास आई। तब उन्होंने कैकेयी को बहुत कठोर और अपमानजनक बातें कहीं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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