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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 2: अयोध्या काण्ड
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सर्ग 78: शत्रुज का रोष, उनका कुब्जा को घसीटना और भरतजी के कहने से उसे मूर्च्छित अवस्था में छोड़ देना
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श्लोक 14
श्लोक
2.78.14
अमन्त्रयत कृत्स्नश्च तस्या: सर्व: सखीजन:।
यथायं समुपक्रान्तो नि:शेषं न: करिष्यति॥ १४॥
अनुवाद
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उसकी सारी सहेलियाँ एकत्र हो गईं और आपस में सलाह करने लगीं, "जिस तरह इसने कुबजा को जबरदस्ती पकड़ लिया है, उससे ऐसा लगता है कि यह हममें से किसी को भी जीवित नहीं छोड़ेगा।"
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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