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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 2: अयोध्या काण्ड
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सर्ग 78: शत्रुज का रोष, उनका कुब्जा को घसीटना और भरतजी के कहने से उसे मूर्च्छित अवस्था में छोड़ देना
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श्लोक 11
श्लोक
2.78.11
तीव्रमुत्पादितं दु:खं भ्रातॄणां मे तथा पितु:।
यथा सेयं नृशंसस्य कर्मण: फलमश्नुताम्॥ ११॥
अनुवाद
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इस पापिनी ने मेरे भाइयों और पिता को जो असहनीय पीड़ा पहुँचाई है, उसी की तरह कठोर कर्म का फल उसे भी भोगना पड़े।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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