श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 78: शत्रुज का रोष, उनका कुब्जा को घसीटना और भरतजी के कहने से उसे मूर्च्छित अवस्था में छोड़ देना  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  2.78.10 
 
 
शत्रुघ्नश्च तदाज्ञाय वचनं भृशदु:खित:।
अन्त:पुरचरान् सर्वानित्युवाच धृतव्रत:॥ १०॥
 
 
अनुवाद
 
  शत्रुघ्न ने द्वारपाल की बात सुनकर और भी दुःखी हो गए। उन्होंने अपने कर्तव्य का निश्चय किया और अन्तःपुर में रहने वाले सभी लोगों को बुलाकर इस प्रकार कहा-।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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