श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 72: भरत का कैकेयी से पिता के परलोकवास का समाचार पा दुःखी हो विलाप करना,कैकेयी द्वारा उनका श्रीराम के वनगमन के वृत्तान्त से अवगत होना  »  श्लोक 3
 
 
श्लोक  2.72.3 
 
 
स प्रविश्यैव धर्मात्मा स्वगृहं श्रीविवर्जितम्।
भरत: प्रेक्ष्य जग्राह जनन्याश्चरणौ शुभौ॥ ३॥
 
 
अनुवाद
 
  धर्मात्मा भरत अपने घर में प्रवेश करते ही देखते हैं कि उनका घर श्रीहीन हो रहा है, तब वे अपनी माता के शुभ चरणों को स्पर्श करते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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