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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 2: अयोध्या काण्ड
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सर्ग 72: भरत का कैकेयी से पिता के परलोकवास का समाचार पा दुःखी हो विलाप करना,कैकेयी द्वारा उनका श्रीराम के वनगमन के वृत्तान्त से अवगत होना
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श्लोक 25
श्लोक
2.72.25
दानयज्ञाधिकारा हि शीलश्रुतितपोनुगा।
बुद्धिस्ते बुद्धिसम्पन्न प्रभेवार्कस्य मन्दिरे॥ २५॥
अनुवाद
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सूरज की किरणें जिस तरह स्थिर रहती हैं, उसी तरह तेरी बुद्धि भी स्थिर है। तू दान और यज्ञ करने का अधिकारी है क्योंकि तू सदाचार और वेदों का पालन करने वाला है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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