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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 2: अयोध्या काण्ड
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सर्ग 72: भरत का कैकेयी से पिता के परलोकवास का समाचार पा दुःखी हो विलाप करना,कैकेयी द्वारा उनका श्रीराम के वनगमन के वृत्तान्त से अवगत होना
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श्लोक 22-23
श्लोक
2.72.22-23
तमार्तं देवसंकाशं समीक्ष्य पतितं भुवि।
निकृत्तमिव सालस्य स्कन्धं परशुना वने॥ २२॥
माता मातङ्गसंकाशं चन्द्रार्कसदृशं सुतम्।
उत्थापयित्वा शोकार्तं वचनं चेदमब्रवीत्॥ २३॥
अनुवाद
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ब भरत इस तरह जंगल में फरसे से काटे गए साखू के तने की तरह पृथ्वी पर लेटे हुए थे। माता कैकयी ने उन्हें देखा, तो उनके पुत्र का हाल देखकर वे बहुत दुखी हुईं। उन्होंने अपने पुत्र को उठाया और इस प्रकार कहा—
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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