श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 72: भरत का कैकेयी से पिता के परलोकवास का समाचार पा दुःखी हो विलाप करना,कैकेयी द्वारा उनका श्रीराम के वनगमन के वृत्तान्त से अवगत होना  »  श्लोक 11
 
 
श्लोक  2.72.11 
 
 
शून्योऽयं शयनीयस्ते पर्यङ्को हेमभूषित:।
न चायमिक्ष्वाकुजन: प्रहृष्ट: प्रतिभाति मे॥ ११॥
 
 
अनुवाद
 
  तुमारा शय्या जिसपर सोने के आभूषण जड़े हुए थे वो आज सूना क्यों है? आज महाराज महल में क्यों नहीं हैं? राज परिवार के सदस्य आज खुश क्यों नहीं दिख रहे हैं?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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