श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 72: भरत का कैकेयी से पिता के परलोकवास का समाचार पा दुःखी हो विलाप करना,कैकेयी द्वारा उनका श्रीराम के वनगमन के वृत्तान्त से अवगत होना  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  2.72.1 
 
 
अपश्यंस्तु ततस्तत्र पितरं पितुरालये।
जगाम भरतो द्रष्टुं मातरं मातुरालये॥ १॥
 
 
अनुवाद
 
  तदनंतर, भरत ने अपने पिता को उनके महल में नहीं देखा, इसलिए वे अपनी माता के महल में जाकर उनसे मिलने गए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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