श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 71: रथ और सेना सहित भरत की यात्रा, अयोध्या की दुरवस्था देखते हुए सारथि से अपना दुःखपूर्ण उद्गार प्रकट करते हुए राजभवन में प्रवेश  »  श्लोक 46
 
 
श्लोक  2.71.46 
 
 
बभूव पश्यन् मनसोऽप्रियाणि
यान्यन्यदा नास्य पुरे बभूवु:।
अवाक्शिरा दीनमना न हृष्ट:
पितुर्महात्मा प्रविवेश वेश्म॥ ४६॥
 
 
अनुवाद
 
  महात्मा भरत ने उस नगर में पहुंचकर वहां ऐसी अप्रिय बातें देखीं जो पहले कभी नहीं देखी थी। इससे उनका मन दुखी हुआ और चेहरा उतर गया। निराश होकर वे पिता के घर में प्रवेश कर गए।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्येऽयोध्याकाण्डे एकसप्ततितम: सर्ग:॥ ७१॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके अयोध्याकाण्डमें इकहत्तरहवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ ७१॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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