महात्मा भरत ने उस नगर में पहुंचकर वहां ऐसी अप्रिय बातें देखीं जो पहले कभी नहीं देखी थी। इससे उनका मन दुखी हुआ और चेहरा उतर गया। निराश होकर वे पिता के घर में प्रवेश कर गए।
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्येऽयोध्याकाण्डे एकसप्ततितम: सर्ग:॥ ७१॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके अयोध्याकाण्डमें इकहत्तरहवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ ७१॥