श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 71: रथ और सेना सहित भरत की यात्रा, अयोध्या की दुरवस्था देखते हुए सारथि से अपना दुःखपूर्ण उद्गार प्रकट करते हुए राजभवन में प्रवेश  »  श्लोक 42-43
 
 
श्लोक  2.71.42-43 
 
 
देवायतनचैत्येषु दीना: पक्षिमृगास्तथा॥ ४२॥
मलिनं चाश्रुपूर्णाक्षं दीनं ध्यानपरं कृशम्।
सस्त्रीपुंसं च पश्यामि जनमुत्कण्ठितं पुरे॥ ४३॥
 
 
अनुवाद
 
  मंदिरों और पवित्र वृक्षों में रहने वाले पशु-पक्षी भी दुखी दिखाई पड़ रहे हैं। मैंने देखा, नगर के सभी स्त्री-पुरुषों के चेहरे उदास हैं, उनकी आँखों में आँसू भरे हुए हैं और वे सभी चिंतित, दुर्बल और व्याकुल दिख रहे हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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