इसके पश्चात सत्य की प्रतिज्ञा करने वाले भरत पवित्र होकर शिलावहा नामक नदी के पास पहुँचे, जो अपनी प्रबल धारा के कारण बड़ी-बड़ी शिलाखण्डों एवं चट्टानों को भी बहा ले जाती है। उस नदी का दर्शन करके वे आगे बढ़ गये और विशाल पर्वतों को पार करते हुए चैत्ररथ नामक वन में पहुँच गये।