श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 71: रथ और सेना सहित भरत की यात्रा, अयोध्या की दुरवस्था देखते हुए सारथि से अपना दुःखपूर्ण उद्गार प्रकट करते हुए राजभवन में प्रवेश  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  2.71.4 
 
 
सत्यसंध: शुचिर्भूत्वा प्रेक्षमाण: शिलावहाम्।
अभ्यगात् स महाशैलान् वनं चैत्ररथं प्रति॥ ४॥
 
 
अनुवाद
 
  इसके पश्चात सत्य की प्रतिज्ञा करने वाले भरत पवित्र होकर शिलावहा नामक नदी के पास पहुँचे, जो अपनी प्रबल धारा के कारण बड़ी-बड़ी शिलाखण्डों एवं चट्टानों को भी बहा ले जाती है। उस नदी का दर्शन करके वे आगे बढ़ गये और विशाल पर्वतों को पार करते हुए चैत्ररथ नामक वन में पहुँच गये।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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