श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 71: रथ और सेना सहित भरत की यात्रा, अयोध्या की दुरवस्था देखते हुए सारथि से अपना दुःखपूर्ण उद्गार प्रकट करते हुए राजभवन में प्रवेश  »  श्लोक 39-40h
 
 
श्लोक  2.71.39-40h 
 
 
अपेतमाल्यशोभानि असम्मृष्टाजिराणि च॥ ३९॥
देवागाराणि शून्यानि न भान्तीह यथा पुरा।
 
 
अनुवाद
 
  मंदिर फूलों से सजे हुए प्रतीत नहीं होते। इनके प्रांगण साफ नहीं दिखते। ये मनुष्यों से खाली हो रहे हैं, इसलिए इनका प्रथम जैसा शोभा नहीं रह गई है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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