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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 2: अयोध्या काण्ड
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सर्ग 71: रथ और सेना सहित भरत की यात्रा, अयोध्या की दुरवस्था देखते हुए सारथि से अपना दुःखपूर्ण उद्गार प्रकट करते हुए राजभवन में प्रवेश
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श्लोक 32
श्लोक
2.71.32
विषण्ण: श्रान्तहृदयस्त्रस्त: संलुलितेन्द्रिय:।
भरत: प्रविवेशाशु पुरीमिक्ष्वाकुपालिताम्॥ ३२॥
अनुवाद
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विषण्ण हृदय वाले, थके हुए और भयभीत भरत की समस्त इंद्रियां व्याकुल सी हो गई थीं। इसी अवस्था में वे शीघ्रतापूर्वक इक्ष्वाकु वंश के राजाओं द्वारा पालित अयोध्यापुरी में प्रवेश कर गए।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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