श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 71: रथ और सेना सहित भरत की यात्रा, अयोध्या की दुरवस्था देखते हुए सारथि से अपना दुःखपूर्ण उद्गार प्रकट करते हुए राजभवन में प्रवेश  »  श्लोक 31
 
 
श्लोक  2.71.31 
 
 
सर्वथा कुशलं सूत दुर्लभं मम बन्धुषु।
तथा ह्यसति सम्मोहे हृदयं सीदतीव मे॥ ३१॥
 
 
अनुवाद
 
  सारथे! यह स्पष्ट है कि इस समय मेरे मित्रों में कुशल-मंगल की स्थिति बिल्कुल भी नहीं है, तभी तो मोह का कोई कारण न होने पर भी मेरा हृदय बैठता जा रहा है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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