श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 71: रथ और सेना सहित भरत की यात्रा, अयोध्या की दुरवस्था देखते हुए सारथि से अपना दुःखपूर्ण उद्गार प्रकट करते हुए राजभवन में प्रवेश  »  श्लोक 19-21h
 
 
श्लोक  2.71.19-21h 
 
 
अयोध्यामग्रतो दृष्ट्वा सारथिं चेदमब्रवीत्।
एषा नातिप्रतीता मे पुण्योद्याना यशस्विनी॥ १९॥
अयोध्या दृश्यते दूरात् सारथे पाण्डुमृत्तिका।
यज्विभिर्गुणसम्पन्नैर्ब्राह्मणैर्वेदपारगै:॥ २०॥
भूयिष्ठमृद्धैराकीर्णा राजर्षिवरपालिता।
 
 
अनुवाद
 
  अयोध्यापुरी को देखकर श्रीराम अपने सारथी से बोले- ‘सूत! पवित्र उद्यानों से सुशोभित यह यशस्वी नगरी आज मुझे अधिक प्रसन्न नहीं दिखायी देती है। यह वही नगरी है जहाँ सदा यज्ञ-याग करने वाले गुणवान् और वेदों के पारङ्गत विद्वान् ब्राह्मण निवास करते हैं, जहाँ बहुत-से धनियों की भी बस्ती है, जिसे राजर्षियों में श्रेष्ठ महाराज दशरथ पालते हैं, वही अयोध्या इस समय दूर से सफेद मिट्टी के ढूह की तरह दीख रही है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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