अयोध्यापुरी को देखकर श्रीराम अपने सारथी से बोले- ‘सूत! पवित्र उद्यानों से सुशोभित यह यशस्वी नगरी आज मुझे अधिक प्रसन्न नहीं दिखायी देती है। यह वही नगरी है जहाँ सदा यज्ञ-याग करने वाले गुणवान् और वेदों के पारङ्गत विद्वान् ब्राह्मण निवास करते हैं, जहाँ बहुत-से धनियों की भी बस्ती है, जिसे राजर्षियों में श्रेष्ठ महाराज दशरथ पालते हैं, वही अयोध्या इस समय दूर से सफेद मिट्टी के ढूह की तरह दीख रही है।