श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 71: रथ और सेना सहित भरत की यात्रा, अयोध्या की दुरवस्था देखते हुए सारथि से अपना दुःखपूर्ण उद्गार प्रकट करते हुए राजभवन में प्रवेश  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  2.71.13 
 
 
स तांस्तु प्रियकान् प्राप्य शीघ्रानास्थाय वाजिन:।
अनुज्ञाप्याथ भरतो वाहिनीं त्वरितो ययौ॥ १३॥
 
 
अनुवाद
 
  प्रिय कदम्बों से युक्त उद्यान में पहुँचकर अपने रथ में शीघ्रगामी घोड़ों को जोतकर भरत ने सेना को धीरे-धीरे आने की आज्ञा दी और स्वयं तीव्र गति से आगे बढ़ चले।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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