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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 2: अयोध्या काण्ड
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सर्ग 71: रथ और सेना सहित भरत की यात्रा, अयोध्या की दुरवस्था देखते हुए सारथि से अपना दुःखपूर्ण उद्गार प्रकट करते हुए राजभवन में प्रवेश
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श्लोक 10
श्लोक
2.71.10
स गङ्गां प्राग्वटे तीर्त्वा समायात् कुटिकोष्टिकाम्।
सबलस्तां स तीर्त्वाथ समगाद् धर्मवर्धनम्॥ १०॥
अनुवाद
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प्राग्वट नगर में गंगा नदी को पार कर वे कुटिकोष्टिका नामक नदी के तट पर पहुँचे और सभी सेना के साथ उस नदी को पार कर धर्मवर्धन नामक गाँव में जा पहुँचे।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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