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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 2: अयोध्या काण्ड
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सर्ग 70: दूतों का भरत को वसिष्ठजी का संदेश सुनाना, भरत का पिता आदि की कुशल पूछना, शत्रुघ्न के साथ अयोध्या की ओर प्रस्थान करना
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श्लोक 6
श्लोक
2.70.6
प्रतिगृह्य तु तत् सर्वं स्वनुरक्त: सुहृज्जने।
दूतानुवाच भरत: कामै: सम्प्रतिपूज्य तान्॥ ६॥
अनुवाद
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स्वनुरक्त सुहृदों को लेकर भरत ने वो सारी वस्तुएँ उन्हें भेंट कर दीं। उसके बाद इच्छानुसार वस्तुएँ देकर दूतों का सत्कार करने के बाद इस प्रकार कहा-।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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