श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 70: दूतों का भरत को वसिष्ठजी का संदेश सुनाना, भरत का पिता आदि की कुशल पूछना, शत्रुघ्न के साथ अयोध्या की ओर प्रस्थान करना  »  श्लोक 30
 
 
श्लोक  2.70.30 
 
 
बलेन गुप्तो भरतो महात्मा
सहार्यकस्यात्मसमैरमात्यै:।
आदाय शत्रुघ्नमपेतशत्रु-
र्गृहाद् ययौ सिद्ध इवेन्द्रलोकात्॥ ३०॥
 
 
अनुवाद
 
  अजेय महापुरुष भरत, अपनी और मामा की सेना से सुरक्षित होकर, शत्रुघ्न को अपने रथ पर बैठाकर, नाना के अपने ही समान माननीय मंत्रियों के साथ मामा के घर से निकल पड़े। मानो कोई सिद्ध पुरुष इन्द्रलोक से किसी अन्य स्थान के लिए निकल पड़ा हो।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्येऽयोध्याकाण्डे सप्ततितम: सर्ग:॥ ७०॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके अयोध्याकाण्डमें सत्तरवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ ७०॥
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.