श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 70: दूतों का भरत को वसिष्ठजी का संदेश सुनाना, भरत का पिता आदि की कुशल पूछना, शत्रुघ्न के साथ अयोध्या की ओर प्रस्थान करना  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  2.70.25 
 
 
बभूव ह्यस्य हृदये चिन्ता सुमहती तदा।
त्वरया चापि दूतानां स्वप्नस्यापि च दर्शनात्॥ २५॥
 
 
अनुवाद
 
  उस अवस्था में उनके हृदय में बड़ी चिंता व्याप्त थी। इसके दो कारण थे, एक तो दूत जल्दी से वहाँ से चलने के लिए व्याकुल थे और दूसरा उन्हें एक दुःस्वप्न भी दिखाई दिया था।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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