श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 70: दूतों का भरत को वसिष्ठजी का संदेश सुनाना, भरत का पिता आदि की कुशल पूछना, शत्रुघ्न के साथ अयोध्या की ओर प्रस्थान करना  »  श्लोक 21
 
 
श्लोक  2.70.21 
 
 
रुक्मनिष्कसहस्रे द्वे षोडशाश्वशतानि च।
सत्कृत्य केकयीपुत्रं केकयो धनमादिशत्॥ २१॥
 
 
अनुवाद
 
  केकयनरेश ने केकयी के पुत्र भरत को सत्कारस्वरूप बहुत-सा धन दिया। उन्होंने उन्हें दो हजार सोने की मोहरें और सोलह सौ घोड़े भी दिए। इस प्रकार, केकयनरेश ने भरत का बहुत आदर-सत्कार किया और उन्हें भरपूर धन-संपत्ति प्रदान की।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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