श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 70: दूतों का भरत को वसिष्ठजी का संदेश सुनाना, भरत का पिता आदि की कुशल पूछना, शत्रुघ्न के साथ अयोध्या की ओर प्रस्थान करना  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  2.70.1 
 
 
भरते ब्रुवति स्वप्नं दूतास्ते क्लान्तवाहना:।
प्रविश्यासह्यपरिखं रम्यं राजगृहं पुरम्॥ १॥
 
 
अनुवाद
 
  जब भरत अपने मित्रों को स्वप्न का वृत्तांत सुना रहे थे, उसी समय थके हुए वाहनों वाले वे दूत रमणीय राजगृहपुर में प्रवेश कर रहे थे। राजगृहपुर की खाई को लाँघना शत्रुओं के लिए असहनीय कष्ट का कारण था।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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