श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 64: राजा दशरथ का अपने द्वारा मुनि कुमार के वध से दुःखी हुए उनके मातापिता के विलाप और उनके दिये हुए शाप का प्रसंग सुनाकर अपने प्राणों को त्याग देना  »  श्लोक 72-73h
 
 
श्लोक  2.64.72-73h 
 
 
कौसल्ये चित्तमोहेन हृदयं सीदतेतराम्॥ ७२॥
वेदये न च संयुक्तान् शब्दस्पर्शरसानहम्।
 
 
अनुवाद
 
  कौसल्ये! मेरे चित्त पर मोह छा रहा है, हृदय अत्यंत दुखी हो रहा है, इन्द्रियों के संपर्क में आने पर भी मुझे शब्द, स्पर्श और स्वाद आदि विषयों का अनुभव नहीं हो रहा है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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