कौसल्ये चित्तमोहेन हृदयं सीदतेतराम्॥ ७२॥
वेदये न च संयुक्तान् शब्दस्पर्शरसानहम्।
अनुवाद
कौसल्ये! मेरे चित्त पर मोह छा रहा है, हृदय अत्यंत दुखी हो रहा है, इन्द्रियों के संपर्क में आने पर भी मुझे शब्द, स्पर्श और स्वाद आदि विषयों का अनुभव नहीं हो रहा है।