श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 64: राजा दशरथ का अपने द्वारा मुनि कुमार के वध से दुःखी हुए उनके मातापिता के विलाप और उनके दिये हुए शाप का प्रसंग सुनाकर अपने प्राणों को त्याग देना  »  श्लोक 64-65h
 
 
श्लोक  2.64.64-65h 
 
 
दुर्वृत्तमपि क: पुत्रं त्यजेद् भुवि विचक्षण:॥ ६४॥
कश्च प्रव्राज्यमानो वा नासूयेत् पितरं सुत:।
 
 
अनुवाद
 
  कौन बुद्धिमान् पुरुष इस भूतल पर अपने दुराचारी पुत्र का भी परित्याग कर सकता है? (एक मैं हूँ, जिसने अपने धर्मात्मा पुत्र को त्याग दिया) तथा कौन ऐसा पुत्र है, जिसे घर से निकाल दिया जाय और वह पिता को को से तक नहीं? (परंतु श्रीराम चुपचाप चले गये उन्होंने मेरे विरुद्ध एक शब्द भी नहीं कहा)।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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