श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 64: राजा दशरथ का अपने द्वारा मुनि कुमार के वध से दुःखी हुए उनके मातापिता के विलाप और उनके दिये हुए शाप का प्रसंग सुनाकर अपने प्राणों को त्याग देना  »  श्लोक 6
 
 
श्लोक  2.64.6 
 
 
शोकोपहतचित्तश्च भयसंत्रस्तचेतन:।
तच्चाश्रमपदं गत्वा भूय: शोकमहं गत:॥ ६॥
 
 
अनुवाद
 
  शोक से मेरा हृदय पहले से ही व्यथित था और भय से मेरी चेतना बेचैन थी। मुनि के आश्रम में पहुँचने पर मेरा वह शोक और भी अधिक बढ़ गया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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