श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 64: राजा दशरथ का अपने द्वारा मुनि कुमार के वध से दुःखी हुए उनके मातापिता के विलाप और उनके दिये हुए शाप का प्रसंग सुनाकर अपने प्राणों को त्याग देना  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  2.64.5 
 
 
तन्निमित्ताभिरासीनौ कथाभिरपरिश्रमौ।
तामाशां मत्कृते हीनावुपासीनावनाथवत्॥ ५॥
 
 
अनुवाद
 
  वे अपने पुत्र की ही चर्चा में लीन रहते थे, उसके आने की आशा लगाए बैठे थे। उस चर्चा के कारण उन्हें किसी भी प्रकार का परिश्रम या थकान का अनुभव नहीं होता था। हालाँकि, मेरे कारण उनकी वह आशा धूल में मिल चुकी थी, फिर भी वे उसी के आसरे बैठे थे। अब वे दोनों बिल्कुल अनाथ-से हो गये थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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