वे अपने पुत्र की ही चर्चा में लीन रहते थे, उसके आने की आशा लगाए बैठे थे। उस चर्चा के कारण उन्हें किसी भी प्रकार का परिश्रम या थकान का अनुभव नहीं होता था। हालाँकि, मेरे कारण उनकी वह आशा धूल में मिल चुकी थी, फिर भी वे उसी के आसरे बैठे थे। अब वे दोनों बिल्कुल अनाथ-से हो गये थे।