श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 51: निषादराज गुह के समक्ष लक्ष्मण का विलाप  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  2.51.4 
 
 
नहि रामात् प्रियतमो ममास्ते भुवि कश्चन।
ब्रवीम्येव च ते सत्यं सत्येनैव च ते शपे॥ ४॥
 
 
अनुवाद
 
  मैं सत्य की शपथ खाकर तुमसे सत्य कहता हूँ कि इस धरती पर मेरे लिए श्रीराम से अधिक प्रिय कोई दूसरा नहीं है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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