वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 2: अयोध्या काण्ड
»
सर्ग 50: श्रीराम का शृङ्गवेरपुर में गङ्गा तट पर पहुँचकर रात्रि में निवास, वहाँ निषादराज गुह द्वारा उनका सत्कार
»
श्लोक 40-41h
श्लोक
2.50.40-41h
गुहमेवं ब्रुवाणं तु राघव: प्रत्युवाच ह।
अर्चिताश्चैव हृष्टाश्च भवता सर्वदा वयम्॥ ४०॥
पद्भ्यामभिगमाच्चैव स्नेहसंदर्शनेन च।
अनुवाद
play_arrowpause
गुह की बात सुनकर श्री रामचंद्रजी ने उससे इस प्रकार कहा-"हे सखा! तुमने यहाँ तक पैदल आकर स्नेह दिखाया, इससे हमें बहुत प्रसन्नता हुई और हम सदा के लिए तुम्हारे द्वारा पूजित और स्वागत-सत्कृत हुए।"
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.