श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 5: वसिष्ठजी का सीता सहित श्रीराम को उपवास व्रत की दीक्षा देना,राजा दशरथ का अन्तःपुर में प्रवेश  »  श्लोक 6
 
 
श्लोक  2.5.6 
 
 
तमागतमृषिं रामस्त्वरन्निव ससम्भ्रमम्।
मानयिष्यन् स मानार्हं निश्चक्राम निवेशनात्॥ ६॥
 
 
अनुवाद
 
  श्रीरामचन्द्रजी ने बड़ी उतावली के साथ घर से बाहर निकलकर वेग से आए हुए उन सम्माननीय महर्षि का स्वागत किया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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