श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 5: वसिष्ठजी का सीता सहित श्रीराम को उपवास व्रत की दीक्षा देना,राजा दशरथ का अन्तःपुर में प्रवेश  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  2.5.15 
 
 
स राजभवनप्रख्यात् तस्माद् रामनिवेशनात्।
निर्गत्य ददृशे मार्गं वसिष्ठो जनसंवृतम्॥ १५॥
 
 
अनुवाद
 
  वसिष्ठ जी, राजभवनों में सबसे श्रेष्ठ श्री राम के भव्य महल से बाहर आकर, चारों ओर के रास्तों को लोगों की भीड़ से भरा हुआ देखकर विस्मय में पड़ गए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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