श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 43: महारानी कौसल्या का विलाप  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  2.43.4 
 
 
अथास्मिन् नगरे रामश्चरन् भैक्षं गृहे वसेत्।
कामकारो वरं दातुमपि दासं ममात्मजम्॥ ४॥
 
 
अनुवाद
 
  यदि श्रीराम इस नगर में भिक्षाटन करते हुए भी घर पर रहते या मेरा पुत्र श्रीराम का दास भी बन जाता, तो भी मेरे लिए यही वरदान स्वीकार था (क्योंकि तब भी श्रीराम के दर्शन होते रहते हैं। श्रीराम के वनवास का वरदान तो कैकेयी ने मुझे दुःख देने के लिए ही माँगा है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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