यदि श्रीराम इस नगर में भिक्षाटन करते हुए भी घर पर रहते या मेरा पुत्र श्रीराम का दास भी बन जाता, तो भी मेरे लिए यही वरदान स्वीकार था (क्योंकि तब भी श्रीराम के दर्शन होते रहते हैं। श्रीराम के वनवास का वरदान तो कैकेयी ने मुझे दुःख देने के लिए ही माँगा है।