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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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सर्ग 43: महारानी कौसल्या का विलाप
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श्लोक 3
श्लोक
2.43.3
विवास्य रामं सुभगा लब्धकामा समाहिता।
त्रासयिष्यति मां भूयो दुष्टाहिरिव वेश्मनि॥ ३॥
अनुवाद
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श्रीरामचंद्र को वनवास दिलवाकर सुभगा कैकेयी ने अपनी मनोकामना पूर्ण की है, मैं समझता हूँ कि अब वह सदैव मेरा ध्यान रखकर ही मुझे त्रास देती रहेगी, जैसे कि घर में रहने वाला दुष्ट सर्प निरंतर डराता रहता है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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