एवमुक्तो धिगित्येव राजा दशरथोऽब्रवीत्।
व्रीडितश्च जन: सर्व: सा च तन्नावबुध्यत॥ १७॥
अनुवाद
उसके ऐसा कहनेपर राजा दशरथने कहा—‘धिक्कार है।’ वहाँ जितने लोग बैठे थे सभी लाजसे गड़ गये; किंतु कैकेयी अपने कथनके अनौचित्यको अथवा राजाद्वारा दिये गये धिक्कारके औचित्यको नहीं समझ सकी॥ १७॥