श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 31: श्रीराम और लक्ष्मण का संवाद, श्रीराम की आज्ञा से लक्ष्मण का सुहृदों से पूछकर और दिव्य आयुध लाकर वनगमन के लिये तैयार होना  »  श्लोक 37
 
 
श्लोक  2.31.37 
 
 
वसिष्ठपुत्रं तु सुयज्ञमार्यं
त्वमानयाशु प्रवरं द्विजानाम्।
अपि प्रयास्यामि वनं समस्ता-
नभ्यर्च्य शिष्टानपरान् द्विजातीन्॥ ३७॥
 
 
अनुवाद
 
  वसिष्ठजी के पुत्र ब्राह्मणों में सर्वश्रेष्ठ आर्य सुयज्ञ को तुरंत यहाँ बुलाओ। मैं इन सभी का और बाकी बचे हुए ब्राह्मणों का भी सत्कार करके वन में जाऊँगा।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्येऽयोध्याकाण्डे एकत्रिंश: सर्ग:॥ ३१॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके अयोध्याकाण्डमें इकतीसवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ ३१॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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