श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 31: श्रीराम और लक्ष्मण का संवाद, श्रीराम की आज्ञा से लक्ष्मण का सुहृदों से पूछकर और दिव्य आयुध लाकर वनगमन के लिये तैयार होना  »  श्लोक 35
 
 
श्लोक  2.31.35 
 
 
अहं प्रदातुमिच्छामि यदिदं मामकं धनम्।
ब्राह्मणेभ्यस्तपस्विभ्यस्त्वया सह परंतप॥ ३५॥
 
 
अनुवाद
 
  अरे वीर! तुम मेरे शत्रओं को संताप देते हो। मेरे पास जो यह धन है, मैं चाहता हूँ कि हम मिलकर इसे तपस्वी ब्राह्मणों में बाँट दें।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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