यदि दु:स्थो न रक्षेत भरतो राज्यमुत्तमम्।
प्राप्य दुर्मनसा वीर गर्वेण च विशेषत:॥ २०॥
तमहं दुर्मतिं क्रूरं वधिष्यामि न संशय:।
तत्पक्षानपि तान् सर्वांस्त्रैलोक्यमपि किं तु सा॥ २१॥
कौसल्या बिभृयादार्या सहस्रं मद्विधानपि।
यस्या: सहस्रं ग्रामाणां सम्प्राप्तमुपजीविनाम्॥ २२॥
अनुवाद
‘वीरवर! इस उत्तम राज्यको पाकर यदि भरत बुरे रास्तेपर चलेंगे और दूषित हृदय एवं विशेषत: घमण्डके कारण माताओंकी रक्षा नहीं करेंगे तो मैं उन दुर्बुद्धि और क्रूर भरतका तथा उनके पक्षका समर्थन करनेवाले उन सब लोगोंका वध कर डालूँगा; इसमें संशय नहीं है। यदि सारी त्रिलोकी उनका पक्ष करने लगे तो उसे भी अपने प्राणोंसे हाथ धोना पड़ेगा, परंतु बड़ी माता कौसल्या तो स्वयं ही मेरे-जैसे सहस्रों मनुष्योंका भी भरण कर सकती हैं; क्योंकि उन्हें अपने आश्रितोंका पालन करनेके लिये एक सहस्र गाँव मिले हुए हैं॥