श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 31: श्रीराम और लक्ष्मण का संवाद, श्रीराम की आज्ञा से लक्ष्मण का सुहृदों से पूछकर और दिव्य आयुध लाकर वनगमन के लिये तैयार होना  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  2.31.15 
 
 
तामार्यां स्वयमेवेह राजानुग्रहणेन वा।
सौमित्रे भर कौसल्यामुक्तमर्थममुं चर॥ १५॥
 
 
अनुवाद
 
  सुमित्रा कुमारी! तुम यहीं रहकर अपने प्रयासों से या राजा की कृपा प्राप्त करके माता कौसल्या की सेवा करो। मेरे बताए हुए इस उद्देश्य को ही सफल करो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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