श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 31: श्रीराम और लक्ष्मण का संवाद, श्रीराम की आज्ञा से लक्ष्मण का सुहृदों से पूछकर और दिव्य आयुध लाकर वनगमन के लिये तैयार होना  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  2.31.13 
 
 
सा हि राज्यमिदं प्राप्य नृपस्याश्वपते: सुता।
दु:खितानां सपत्नीनां न करिष्यति शोभनम्॥ १३॥
 
 
अनुवाद
 
  केकयराज अश्वपति की पुत्री कैकेयी महाराज दशरथ के राज्य को पाकर मेरे वियोग के दुःख में डूबी हुई अपनी सौतों के साथ अच्छा बर्ताव नहीं करेगी और उन्हें देखकर स्वयं भी दुखी रहेगी॥ १३॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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