श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 25: कौसल्या का श्रीराम की वनयात्रा के लिये मङ्गल कामना पूर्वक स्वस्तिवाचन करना और श्रीराम का उन्हें प्रणाम करके सीता के भवन की ओर जाना  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  2.25.7 
 
 
समित्कुशपवित्राणि वेद्यश्चायतनानि च।
स्थण्डिलानि च विप्राणां शैला वृक्षा: क्षुपा ह्रदा:।
पतङ्गा: पन्नगा: सिंहास्त्वां रक्षन्तु नरोत्तम॥ ७॥
 
 
अनुवाद
 
  सर्वश्रेष्ठ नर! ये सामग्रियाँ तथा प्राणी वन में तुम्हारी रक्षा करें। ये हैं: समिधाएँ, कुशा, पवित्रा, वेदियाँ, मंदिर, विप्रों के पूजास्थल, पर्वत, पेड़, झाड़ियाँ, झीलें, पक्षी, साँप और सिंह।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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