श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 25: कौसल्या का श्रीराम की वनयात्रा के लिये मङ्गल कामना पूर्वक स्वस्तिवाचन करना और श्रीराम का उन्हें प्रणाम करके सीता के भवन की ओर जाना  »  श्लोक 43
 
 
श्लोक  2.25.43 
 
 
भद्रासनगतं राम वनवासादिहागतम्।
द्रक्ष्यामि च पुनस्त्वां तु तीर्णवन्तं पितुर्वच:॥ ४३॥
 
 
अनुवाद
 
  श्रीराम! जब आप वनवास से यहाँ आकर अपने पिता की प्रतिज्ञा को पूरा करेंगे और राजसिंहासन पर बैठेंगे, तब मैं आपका दर्शन करके पुनः प्रसन्नता का अनुभव करूँगी।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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