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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 2: अयोध्या काण्ड
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सर्ग 25: कौसल्या का श्रीराम की वनयात्रा के लिये मङ्गल कामना पूर्वक स्वस्तिवाचन करना और श्रीराम का उन्हें प्रणाम करके सीता के भवन की ओर जाना
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श्लोक 24
श्लोक
2.25.24
अग्निर्वायुस्तथा धूमो मन्त्राश्चर्षिमुखच्युता:।
उपस्पर्शनकाले तु पान्तु त्वां रघुनन्दन॥ २४॥
अनुवाद
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अग्नि, वायु, धुआं और ऋषियों के मुख से निकले मंत्र स्नान और आचमन के समय तुम्हारी रक्षा करें, हे रघुनंदन!
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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