श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 25: कौसल्या का श्रीराम की वनयात्रा के लिये मङ्गल कामना पूर्वक स्वस्तिवाचन करना और श्रीराम का उन्हें प्रणाम करके सीता के भवन की ओर जाना  »  श्लोक 21
 
 
श्लोक  2.25.21 
 
 
आगमास्ते शिवा: सन्तु सिध्यन्तु च पराक्रमा:।
सर्वसम्पत्तयो राम स्वस्तिमान् गच्छ पुत्रक॥ २१॥
 
 
अनुवाद
 
  बेटा राम! मैं कामना करता हूँ कि तुम्हारी यात्रा मंगलमय हो। तुम्हारे पराक्रम सफल हों और जीवन में तुम्हें हर प्रकार की सम्पन्नता प्राप्त हो। पुत्र, तुम सकुशल यात्रा करो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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