श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 25: कौसल्या का श्रीराम की वनयात्रा के लिये मङ्गल कामना पूर्वक स्वस्तिवाचन करना और श्रीराम का उन्हें प्रणाम करके सीता के भवन की ओर जाना  »  श्लोक 20
 
 
श्लोक  2.25.20 
 
 
नृमांसभोजना रौद्रा ये चान्ये सर्वजातय:।
मा च त्वां हिंसिषु: पुत्र मया सम्पूजितास्त्विह॥ २०॥
 
 
अनुवाद
 
  वत्स! इनके अलावा जितने भी नरमांस खाने वाले भयंकर प्राणी हैं, वे यहाँ मेरे द्वारा पूजित होकर वन में तुम्हारा कोई अहित न करें।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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